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कुछ समय पहले ये अभूतपूर्व दृश्य पुणे के एक बड़े अस्पताल में देखने को मिला, मन में कुछ जिज्ञासा हुई, जो कुछ इस प्रकार है…
वैसे माने तो कण कण में भगवान् है तो फिर क्या लगता है ये भगवान् की टाइल्स दीवार पे होनी चाहिए या फिर हमारे मन पे…?
और क्या टाइल्स दीवार पे लगाने मात्र से लोग दीवार गन्दी करना छोड़ देंगे…नहीं, क्योकि ये दीवार उनकी नहीं है
ऐसे लोग अपने घर की दीवार गन्दी नहीं करते लेकिन दुसरो की करने में इन्हें कतई कोई एतराज नहीं होता है.
एक और जहाँ भारत मे स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है, वहीँ दूसरी और नागरिको को भी समझना चाहिए की दीवार चाहे हमारी हो या दूसरे की, ये देश हमारा है अन्यथा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हम इसे एक और साफ़ करते रहेंगे तो दूसरी तरफ से गन्दा भी करते रहेंगे…
कुल जमा शुन्य!
इस लघु लेख के माध्यम से मेरा आप सभी से अनुरोध है की स्वच्छता का भाव आप में मन से आये न कि किसी आर्थिक दंड के भय या फिर सरकारी आज्ञा से.
जो व्यक्ति इसे समझते है वो शायद इस बात का ध्यान रखेंगे, अन्यथा कण कण में तो वैसे भी भगवान है ही…चाहे इधर थूको या उधर थूको घर में थूको या अस्पताल में थूको क्या फर्क पड़ता है|
ऐसे स्थानों पर भगवान् की टाइलस लगाना तो मात्र एक औपचारिकता भर लगता है और भारतीय मनोविज्ञान की चरम पराकाष्ठा भी.
गौरव कवठेकर
Gaurav.kavathekar@gmail.com
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