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ब्रेकिंग न्यूज़, या फिर एक अर्ध सत्य!

मेरे विचार से...
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चैन से सोना हो तो जाग जाइये…

जी हां ये आज के परिपेक्ष में खबरों का वह त्वरित स्वरुप है जो आज आपके सामने है|

जहाँ समाचार, जो अब खबरें बन चुकी है, और एक होड़ सी मची हो खबर को सबसे पहले दिखाने की, ऐसे मे अगर खबरों की सत्यता ना परखी जाए तो भला कौन परवाह करता है| यह आज का एक गंभीर सत्य है और विचार का विषय भी|

ये तथाकथित अपग्रेडेड न्यूज़ चैनल्स मौसम कि जानकारी के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के पूर्वानुमान सतत लगाते ही रहते है| चाहे बात चुनावी परिणामो कि हो या फिर देश की राजनीती की, किसी सेलेब्रेटी के लव अफैर की हो या फिर क्रिकेट में किसी कॉन्ट्रोवर्सी की| लेकिन खबरों के सही आकलन करने में ये चैनल्स अपना बहुमूल्य समय कतई नहीं गवांते, TRP का जो सवाल होता है|

आइये कुछ सजीव उदाहरणों के माध्यम से इसे समझने का प्रयत्न करते है|

आधुनिक होना बुराई नहीं है, परंतु आधुनिकता के परिवेश मे महज औपचारिक होना ठीक नहीं|

यह तो हम सभी जानते ही है की जब अमेरिका के हाथो ओसामा मारा गया था, तब यह तत्कालीन ज्वलंत समाचार एक वैश्विक खबर बन चुकी थी| परंतु हमारे कई न्यूज़ चैनल इसे इस तरह दिखा सुना रहे थे मानो किसी भारतीय ने चन्द्रमा पर प्रथम कदम रखा हो|

प्रत्येक न्यूज़ चेंनेल इसे अपना एक्सक्लयूसिव बता कर दिखा रहा था| और तो और एक नामी चेंनेल तो इतना उत्साहित था की वह ओसामा और ओबामा में भेद ही नहीं कर सका और चला दी खबर राष्ट्रीय टेलीविज़न पर|

एक समय था जब सिर्फ गले मे खराश मात्र होने से ही न्यूज़ रीडर अनायास कह उठता था “माफ़ कीजिये”| परंतु आज के इस सूचना क्रांति युग में, अपरिपूर्ण खबर दिखाने पर भी  चेंनेल इसे अपनी जवाबदारी मानाने मे हिचकते है| इसे आधुनिकता तो कतई नहीं कहा जा सकता|

ऐसा प्रतीत होता है की आज की पत्रकारिता पूर्णतः संभावनाओ के घटित होने पर ही आधारित नहीं है  अपितु  भविष्य मे घटित होने होने वाली घटनाओ की भविष्यवाणी पर भी आधारित है|

यह समाचार की सही परिभाषा कैसे हो सकती है?  घटना के घटित होने से पूर्व ही उसका पूर्वानुमान भविष्यवाणी होता है ना की समाचार| और एक जागरूक न्यूज़ चैनल को किसी भी तरह की भविष्यवाणियों एवं पूर्वानुमानों से स्वयं को बचाना चाहिए| इसमे कुछ हद तक अपवाद हो सकते है| जैसे जनहित, राष्ट्रहित या फिर सामाजिक सुरक्षा में किये जाने वाले पूर्वानुमान, जिनके तहत समाज को सीधे तौर पर फायदा पोहोचता हो|

चलिए एक और उदाहरण के माध्यम से इस विसंगति को समझने का प्रयत्न करते है|

यदि आप किसी खबर को अपने न्यूज़ चैनल पर दिखाते है, तो तकनीकी रूप से यह माना जा सकता है की आपने उस खबर की सत्यता की जांच अवश्य ही की होगी क्योकि समाज के प्रति यह आपका कर्त्तव्य है और अपेक्षित है की आप कोई अपूर्ण अथवा त्रुटिपूर्ण खबर प्रसारित नहीं करेंगे|

परंतु यह देखने सुनने मे बड़ा ही हास्यास्पद लगता है जब रीडर यह कहते हुए दिखता है की खबर उन्हें सूत्रों से प्राप्त हुई है और “चैनल इस खबर की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है”|

वैधानिक रूप से,यदि चैनल खबर की सत्यता की पुष्टि नहीं कर सकता तो क्या मात्र सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर  उसे खबरों को प्रसारित करने का अधिकार होना चाहिए? शायद नहीं|

पर हमारे देश के जर्नलिज्म में शायद ये चलता है| सबसे पहले खबर दिखाओ और बाद में माफ़ी मांग लो अगर खबर सही नहीं हो तो, और वह भी तब यदि कोई कॉन्ट्रोवर्सी न हो तो|

होड़ मात्र खबरों को एक दूसरे से पहले दिखाने मात्रा की नहीं चल रही है अपितु एक दूसरे से रोचक एवं मसालेदार बनाने की भी है| ऐसे मे सत्यता की जांच मे TRP भला कौन गावायेगा !

दरअसल ये तथाकथित चैनल्स जो स्वयं को न्यूज़ चैनल्स कहलवाते है, वास्तव मे मनोरंजन चैनल्स ही होते है जिनकी खबरों को चटपटा बनाने की अपनी एक अलग शैली होती है| आप इन्हें क्लासिफाइड चैनल्स भी कह सकते है जहाँ खबरें कम और विज्ञापन ज्यादा होते है|

जहाँ एक तरफ तो खबर चल रही होती है और साथ ही साथ उस खबर के अनुसार बैकग्राउंड म्यूजिक भी, जो की देखने सुनाने में किसी न्यूज़ चैनल के लिहाज से निहायत ही  अनुचित प्रतीत होता है| हद तो तब हो जाती है जब ये तथाकथित समाचार चैनल्स अपनी खबरों को बेचने के लिए फ़िल्मी सीन और गानों की मदत लेने में भी नहीं सकुंचाते|

ऐसे में इन्हें समाचार चैनल्स कहने की बजाय सुचनाओं की मंडी कहना अधिक तर्क सांगत होगा जहां प्रातः मे कोई साधुबाबा ज्ञान बंटाते नजर आते है तो मध्यान मे सास-बहु की गॉसिपिंग की जाती है, दोपहर मे बॉलीवुड तो शाम मे “सनसनी” खेज कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते है| और तो और जब शाम ढल जाये, तो देर रात ऑनलाइन अस्पताल खोलने हकीम आ जाया करते है|

क्या कहेंगे ऐसे न्यूज़ चैनल्स को आप? बेशक समाचार चैनल्स तो नहीं कहा जा सकता! आप इन्हें मंडी नहीं तो और क्या कहेंगे? शायद सुपर मॉल कह सकते है यदि आप भी स्वयं को इनकी ही तरह तथाकथित अपग्रेडेड मानते हो… तो|

अब में अपनी कलम को थोड़ा विश्राम और विचारों को क्षणिक विराम देते हुए इस लेख के माध्यम से न्यूज़ ब्राडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBSA) का ध्यान इस और आकर्षित करना चाहता हूँ कि वह इस विषय पर गहन चिंतन करे और समाचार चैनल्स को उनकी पूर्व पहचान और खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त करने में सहायता करें|

चैन से सोना हो तो अब वाकई जाग जाइये…

गौरव दिलीप कवठेकर

Gaurav.kavathekar@gmail.com

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